HIMACHAL NAZAR :- ऊपर तस्वीर में दिख रही पत्तियों को हिमाचल के अलग-अलग स्थानों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है। हिंदी में इसे बिच्छू बूटी तो पहाड़ी में ऐण, कुगस, कंडाली कहा जाता है। अंग्रेजी में इसे नेटल लीफ ( stinging nettle leaf) कहते हैं। इसका बोटेनिकल यानि वैज्ञानिक नाम है अर्टिका डाइओका (urtica dioica)। आज के दौर में तो कह नहीं सकते लेकिन पहले ये बच्चों को शरारतें करने पर उन्हें सबक सिखाने के काम भी लाई जाती थी। आप भी कभी पिटाई के स्वरूप इसका सेवन कर चुके होंगे।
ऐण (बिच्छू बूटी) धोकर उबालने के लिए प्रेशर कुकर में डालता व्यक्ति
जो लोग नहीं जानते उनकी जानकारी के लिए बता देते हैं कि इसे शरीर के साथ लगाने पर तेज जलन होती है और उस हिस्से में फफोले हो जाते हैं। इसकी पत्तियों के डंक तरह चुभती हैं इसलिए इसके बिच्छू बूटी भी कहा जाता है। हि
बिच्छू बूटी का बनता है स्वादिष्ट साग
बहुत से लोग नहीं जानते कि बिच्छू बूटी का साग भी बड़े चाव से खाया जाता है। जी हां, हिमाचल के कई हिस्सों में यह प्राकृतिक औषधी पाई जाती है, लेकिन हर जगह भोजन के तौर पर इसका उपयोग नहीं होता। हिमाचल के चंबा में इसका साग बनाया जाता है।
हालांकि कई लोगों को यह बात अजीब लग सकती है, लेकिन यह औषधी कई रोगों के लिए रामबाण है। इसे आप ठीक उसी तरह बना सकते हैं जैसे की आप सरसोंं का साग पालक या कोई दूसरा साग बनाते हैं। बस इसे सावधानी से काटें, धोएं, उबालें, पीसें और बना लें। खासकर सर्दियों में इसका साग बनाया जाता है।
दवा की तरह काम करती है ऐण
बीएएमएस, एमडी आयुर्वेद डा. लक्ष्मीदत्ता शुक्ला के मुताबिक ह्रदय के लिए यह काफी फायदेमंद बताई गई है बशर्ते चाय के तौर पर इसका सेवन किया जाए। शरीर के डिटॉक्सिफिकेशन या विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर करने में सहायक, प्रेगनेंसी के दौरान, बल्ड सर्कुलेशन, गठिया या मांसपेशियों में दर्द, ऑस्टियोपोरोसिस, बालों को झड़ने से रोकने सहित और कई अन्य रोगों के लिए बिच्छू बूटी काफी कारगर साबित होती है।
बिच्छू बूटी
यह पौधा एलर्जी,जोड़ों की पीड़ा / सूजन,मूत्र विकार, गदूद(प्रोस्टेट वृद्धि),गाउट /वातरक्त आदि रोगों में लाभदायक बताया गया है।स्थानीय लोग इस के पत्तो का साग,सब्जी,सूप,सलाद ,काढ़ा/चाय के रूप में प्रयोग करते है।